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Monday, September 15, 2014

फर्ज का रिस्ता

फर्ज हर रिस्ते की टूटते हुए देखी हमने ।
आज अपनो से ही गम का जहर पी हमने।।
फर्ज हर रिस्ते की ...


नजर मे प्यार हो तो गैर भी अपने लगते,
नफरते दिल हो अगर अपने भी सपने लगते ।
क्या कर पाये कोई रिस्तों की किस्त में बँटकर,
अपने दामन मे कली को काँटे भी सिमटते देखा
और काँटे को पत्ती से उलझते देखी हमने ।


फर्ज हर रिस्ते की टूटते हुए देखी हमने ।
जहाँ था प्यार वही दर्द भी देखी हमने ।।
फर्ज हर रिस्ते की ...


क्या वफा और क्या बेवफाई रिश्तों मे,
कोई समझा नहीं क्यों फर्ज के इन रिश्तो को,
क्या करे कोई जब लूटता है दोस्त जैसा बनकर ।
मैने दामन से कफन को भी बिछुड़ते देखा
ये कोई सपना नहीं हकीकत में देखी हमने ।


फर्ज हर रिस्ते की टूटते हुए देखी हमने ।
जहाँ था दर्द वही दिल को लगा ली हमने ।।
फर्ज हर रिस्ते की ...

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