कितने लंगड़े-कितने लूल्हे
कई अंधे-बहड़े क्यूँ आज हुए हैं
कितने तो बचपन तक नहीं देखा
कई मानसिक शोषण के शिकार हुए हैं
ये भारत माँ तेरी इन भविष्यों के
जीवन में क्यूँ अंधकार हुए हैं ।
स्वतंत्र देश में जन्म लेकर भी
गुलामी की जंजीर बंधी है
क्या दोष है इन बच्चों का
जो निरझर का पाठ पढ़ा है
ये भारत माँ तेरी इन भविष्यों के
जीवन में क्यूँ अंधकार हुए हैं ।
कितने पत्थर तोड़ते- तोड़ते
अपना दम भी तोड़ चुके हैं
ये मजबूर बच्चें है मजदूर नहीं
ये भूख की आग में झुलस गये हैं
ये भारत माँ तेरी इन भविष्यों के
जीवन में क्यूँ अंधकार हुए हैं ।।
कई अंधे-बहड़े क्यूँ आज हुए हैं
कितने तो बचपन तक नहीं देखा
कई मानसिक शोषण के शिकार हुए हैं
ये भारत माँ तेरी इन भविष्यों के
जीवन में क्यूँ अंधकार हुए हैं ।
स्वतंत्र देश में जन्म लेकर भी
गुलामी की जंजीर बंधी है
क्या दोष है इन बच्चों का
जो निरझर का पाठ पढ़ा है
ये भारत माँ तेरी इन भविष्यों के
जीवन में क्यूँ अंधकार हुए हैं ।
कितने पत्थर तोड़ते- तोड़ते
अपना दम भी तोड़ चुके हैं
ये मजबूर बच्चें है मजदूर नहीं
ये भूख की आग में झुलस गये हैं
ये भारत माँ तेरी इन भविष्यों के
जीवन में क्यूँ अंधकार हुए हैं ।।