जाने अनजाने क्यूँ पास बुला लेते है ।
बढ़ा के हाथ दोस्ती का छुड़ा लेते है ।।
जाने अनजाने क्यूँ पास बुला लेते है…
क्या करूँ मैं गिला, किस से करूँ शिकवा,
जो है दस्तूर वो, हँस-हँस के निभा लेते है।
जाने अनजाने क्यूँ पास बुला लेते है…
मैं तन्हा हूँ, सोचता हूँ, क्यूँ होता है अक्सर,
बिठा के पलकों पे, नजरों से गिरा देते है।
जाने अनजाने क्यूँ पास बुला लेते है…
क्यूँ किया ऐसा, हूँ जान के हैंरा,
अपनी कमजोरी मगर, हर लोग छुपा लेते है।
जाने अनजाने क्यूँ पास बुला लेते है ।
बढ़ा के हाथ दोस्ती का छुड़ा लेते है ।।
बढ़ा के हाथ दोस्ती का छुड़ा लेते है ।।
जाने अनजाने क्यूँ पास बुला लेते है…
क्या करूँ मैं गिला, किस से करूँ शिकवा,
जो है दस्तूर वो, हँस-हँस के निभा लेते है।
जाने अनजाने क्यूँ पास बुला लेते है…
मैं तन्हा हूँ, सोचता हूँ, क्यूँ होता है अक्सर,
बिठा के पलकों पे, नजरों से गिरा देते है।
जाने अनजाने क्यूँ पास बुला लेते है…
क्यूँ किया ऐसा, हूँ जान के हैंरा,
अपनी कमजोरी मगर, हर लोग छुपा लेते है।
जाने अनजाने क्यूँ पास बुला लेते है ।
बढ़ा के हाथ दोस्ती का छुड़ा लेते है ।।