टूटे हुए थे घर अपने
जिसमें जीने की आश संजोता रहा ।
कभी रिश्तों में बाँटता रहा
तो कभी ग़मों से सींचता रहा
लोग जिसे कहते हैं जिंदगी
तन्हा उदासीयों में जीता रहा
टूटे हुए थे घर अपने…..
कभी दूर बहुत थे अपने
कभी तो दिल के पास रहे
हर बार मगर उनके जख्मों को
अपने अश्कों में डुबोता रहा ।
टूटे हुए थे घर अपने….
मन में अपनी आश थी
होठों पे बहुत ही प्यास थी
जो भी अरमां थे दिल में
ख्वाबों में उसे पिरोता रहा ।
टूटे हुए थे घर अपने
जिसमें जीने की आश संजोता रहा ।।
जिसमें जीने की आश संजोता रहा ।
कभी रिश्तों में बाँटता रहा
तो कभी ग़मों से सींचता रहा
लोग जिसे कहते हैं जिंदगी
तन्हा उदासीयों में जीता रहा
टूटे हुए थे घर अपने…..
कभी दूर बहुत थे अपने
कभी तो दिल के पास रहे
हर बार मगर उनके जख्मों को
अपने अश्कों में डुबोता रहा ।
टूटे हुए थे घर अपने….
मन में अपनी आश थी
होठों पे बहुत ही प्यास थी
जो भी अरमां थे दिल में
ख्वाबों में उसे पिरोता रहा ।
टूटे हुए थे घर अपने
जिसमें जीने की आश संजोता रहा ।।