कई कश्ती को किनारों से बिछुड़ते देखा
कई पतवार को मझधार में टूटते देखा
नहीं देखा कभी हद मैनें बेबफाई का
नाज था जिनको कभी समंदर पे
प्यास से उसको भी तड़पते देखा ।।
कई पतवार को मझधार में टूटते देखा
नहीं देखा कभी हद मैनें बेबफाई का
नाज था जिनको कभी समंदर पे
प्यास से उसको भी तड़पते देखा ।।