भटका है जब से जिंदगी में
तेरी कदमों के निशां
भटक रहा हूँ दर-बदर
कोई मंजिल है कहाँ
क्या तेरा जाता
गर ख्वाब के परदे
निगाहों से ना हटाती
लाकर उजाले में फिर क्यूँ
प्यार के दीपक बुझा दिये ।।
तेरी कदमों के निशां
भटक रहा हूँ दर-बदर
कोई मंजिल है कहाँ
क्या तेरा जाता
गर ख्वाब के परदे
निगाहों से ना हटाती
लाकर उजाले में फिर क्यूँ
प्यार के दीपक बुझा दिये ।।