अजनवी सा लग रहा हूँ
क्यूँ अपने शहर में
भटकता सा दिख रहा हूँ
क्यूँ अपने नजर में
समझ में कुछ नहीं आता
इस मुश्किल में या रब
तन्हा कैसे बढ़ता रहूँ
मैं अपने डगर में ।।
क्यूँ अपने शहर में
भटकता सा दिख रहा हूँ
क्यूँ अपने नजर में
समझ में कुछ नहीं आता
इस मुश्किल में या रब
तन्हा कैसे बढ़ता रहूँ
मैं अपने डगर में ।।