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Wednesday, October 8, 2014

ना रोक कदम

ना रोक कदम-बस चलते चल
करते खुदा का गुनगान ।।
इतना सोच कि-रास्ता सही है या गलत,
इसलिए कि तुम्हे पहुचना है
उस मंजील तक-जहाँ अपनी हो पहचान


इसी में है अब तेरी शान
क्योंकि-यहाँ हर कोई है
अपने आप से अनजान,
फिर क्यों न, खुद से खुद की कीमत जान ।


ना हो बेईमान-मत हो शैतान
भला इसमे क्या सम्मान ।
थोड़ी और जुटा ले साहस
चलते चल अपने मुकाम,
ना रोक कदम-बस चलते चल
करते खुदा का गुनगान ।।


कहाँ जाओगे, बचकर अपने आप से
जब भटक जाओगे, आशाओं के चैराहों पर,
किसी के प्रति आर्कषण,
तो नफरत की दीवारों पर ।


मत पुछो कि-कितने है आज
अपनी जिंदगी से हैरान,
भूलकर कर्तव्यों को
चलते चले जा रहे है-राह सुनसान ।


इसलिए, जब तक है जान
आज और अभी ये ठान कि-
तुम्हे पहुँचना है अपनी मंजिल तक
चाहे रास्ता सरल हो या कठिन
पर जाती हो मुकाम


यूँ तो-चले जाते है,
सभी ये दुनिया छोड़कर
तू छोड़कर जा अपनी कोई निशान।
ना रोक कदम-बस चलते चल
करते खुदा का गुनगान ।।

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