वो नन्ही ममता की प्यासी
कोमलता की तू परिभाषी
कितनी पीड़ा देकर आती
फिर भी आँचल की अभिलाषी
फिर भी आँचल की अभिलाषी
जिस आँगन में है तू आती
तू है जग के मन की वासी
सुख-दुख है सब तेरी दासी
इस धरती से और अंबर से
आने वाले हर एक पल से
बीत रहे नये इक पल से
उन ममता की उन छाया की
धरती माँ की तरह जो तपकर
सारी दुनियाँ को है पलती
तू ही माँ के साँचे मे ढ़लती
सच तो है कि इस दुनियाँ में
तू ही हर रिश्ते में ढ़लती ।।