यूँ न अपनों से-
शराफत का पर्दा किजिए
दूर बैठे न नजरों से-
बाते किजिए,
पास आने का भी
कुछ रास्ता ढूँढिए ।
यूँ न अपनों से ...
निकल जाने दो मुखड़ा-
शर्म की छाँव से
आज मस्ती छलकी है
हर इक नजर बार से
अपनी नजरों से भी
कुछ इशारा किजिए ।
यूँ न अपनों से ...
ये रिश्ते ये नाते-हैं कुछ भी नहीं
बेमुहब्बत ये दुनिया है-
कुछ भी नहीं
फिर क्यूँ न-
अपनी नजरों से ही शुरू किजिए ।।
यूँ न अपनों से-
शराफत का पर्दा किजिए।।
शराफत का पर्दा किजिए
दूर बैठे न नजरों से-
बाते किजिए,
पास आने का भी
कुछ रास्ता ढूँढिए ।
यूँ न अपनों से ...
निकल जाने दो मुखड़ा-
शर्म की छाँव से
आज मस्ती छलकी है
हर इक नजर बार से
अपनी नजरों से भी
कुछ इशारा किजिए ।
यूँ न अपनों से ...
ये रिश्ते ये नाते-हैं कुछ भी नहीं
बेमुहब्बत ये दुनिया है-
कुछ भी नहीं
फिर क्यूँ न-
अपनी नजरों से ही शुरू किजिए ।।
यूँ न अपनों से-
शराफत का पर्दा किजिए।।