क्या किस्सा था अपना
क्या क्या अफ़साने बना दिये
क्या नया रिश्ते बनायें
जब, जो अपनें थे
अब पराये हो गये।
कुछ पल ठहरता जो
अरमां, मचले हुए
देखते देखते वो
शाम ढल गऐ।
थोड़े एहसास
और धुंघली यादों में
चल परे जिस राह
वहाॅ, सब बिछुड़ते चले गये ।
अब तन्हाई है, पर सुकुन है यारों
संजोये रखा था जो,
दर्द अपने सीने में
कुछ इस तरह, छलका कि
भुला दिये सब गिले ।।