अब आये दिन बहार के
खुशियों के त्योहार के
भाई और बहनों के
मिलने के इंतिजार के ।
सावन की झूलों में
तिलक राखियों से सजी
भाइयों को खुशियाँ भी
कभी दूर बहना
जब हुए साथ तो
खिल उठे अंगना ।
झूल रही बहना
सोचती है लूँगी मैं
सोने की कंगना ।
थाल आ गई
अब तो सावन की
मिशाल आ गई
आरती के संग
लड्डू लाल आ गई ।
कमाल आ गई
लगता है सावन की
बहार आ गई ।।