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Sunday, November 23, 2014

ओ शमां

देखती रही अगर यूँ ही
बार-बार मुस्कुरा के
बहक ना जायें हम कही
इस जाम में नहा के ।


बदला है क्या ये मौसम
बदली है रूत हवा का
हर डाल पे है कोयल
खुशियों के गीत गाती


हँस रहे है फूल अब
बागों में खिलखिला के।
बहक ना जायें हम कही
यादों के गुल खिला के ।।


जानें ना क्यूँ दिल मेरा
कह रहा है ऐसा
जब ना होती सामने
फिर ये तरफ कैसी


पागल ना कहीं हो जाएँ
हम होश को गवाँ के
देखती रही अगर यूँ ही
बार-बार मुस्कुरा के ।।


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