जब भी शर्म और हया की
आँचल में सिमट के आती हो
ऐ बेकरार दिल फिर से
मिटने को मचल जाता है
सच तो है कि ये तेरी
हूर सी सूरत को देखकर
तुझको चाहने वाला भी
खुद को भूल जाता है ।।
आँचल में सिमट के आती हो
ऐ बेकरार दिल फिर से
मिटने को मचल जाता है
सच तो है कि ये तेरी
हूर सी सूरत को देखकर
तुझको चाहने वाला भी
खुद को भूल जाता है ।।