काश, ये तालुकात
अपना भी पुराना होता
जिंदगी यूँ बीत जाती
ना कोई अफसाना होता
वफा करने में वो भी
मुझ जैसा दीवाना होता
जजवात ना टूटता
अगर ये तुफां ना होता
इक झलक देखकर
यूँ ना मैं परवाना होता
अगर तू शमां बनकर
ना मुझे लुभाया होता
काश, इस दिल में भी
तसल्ली का खजाना होता
बेताबी यूँ ना बढ़ती
अपना कोई ठिकाना होता ।।
अपना भी पुराना होता
जिंदगी यूँ बीत जाती
ना कोई अफसाना होता
वफा करने में वो भी
मुझ जैसा दीवाना होता
जजवात ना टूटता
अगर ये तुफां ना होता
इक झलक देखकर
यूँ ना मैं परवाना होता
अगर तू शमां बनकर
ना मुझे लुभाया होता
काश, इस दिल में भी
तसल्ली का खजाना होता
बेताबी यूँ ना बढ़ती
अपना कोई ठिकाना होता ।।