अजीब मंजर है कि
हर शक्स पे है नशा छाई
जिसको देखो वही है
खुद की चाहत पायी
मगर उलझा है यहाँ हर शक्स
कहीं ना कहीं
किसी को दर्द है काँटों का
तो कोई फूलों से है जख्म खायी।।
हर शक्स पे है नशा छाई
जिसको देखो वही है
खुद की चाहत पायी
मगर उलझा है यहाँ हर शक्स
कहीं ना कहीं
किसी को दर्द है काँटों का
तो कोई फूलों से है जख्म खायी।।